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PDF Name | Ganesh Atharvashirsha PDF |
PDF size | 1.00 MB |
Language | Hindi |
PDF catagory | e-book or Novels |
Source / Credits | drive.google.com |
Updated By | Gopinath |
source: nirmal vidya
Ganesh Atharvashirsha PDF Lyrics
॥ शान्ति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥ ।
स्वस्तिनस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद वक्तारमवतु
अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥ ॥ उपनिषत् ॥
हरित नमस्ते गणपतये ।।
हरिः ॐ नमस्ते गणपतये ॥
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ॥ त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ॥
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ॥
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ॥ त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ॥
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ १ ॥
॥ स्वरूप तत्त्व ॥
ऋतं वच्मि (वदिष्यामि) ॥ सत्यं वच्मि (वदिष्यामि) ॥ २ ॥
अव त्वं माम् ॥ अव वक्तारम् ॥ अव श्रोतारम् ॥
अव दातारम् । अव धातारम् ॥
अवानूचानमव शिष्यम् ॥
अव पश्चात्तात् ॥ अव पुरस्तात् ॥
अवोत्तरात्तात् ॥ अव दक्षिणात्तात् ॥
अव बोध्वांत्तात् ॥ अवाधरात्तात् ॥
सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् ॥ ३ ॥
त्वं वाङ्गमयस्त्वं चिन्मयः ॥
त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः ॥
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि ॥
त्वं प्रत्यक्ष ब्रह्मासि ॥
एवं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते ॥
॥ सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ॥
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ॥
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ॥
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ॥
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ ५ ॥
त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः ॥
त्वं देहत्रयातीतः ॥ त्वं कालत्रयातीतः ॥
त्वं मूलाधारः स्थितोऽसि नित्यम् ॥
त्वं शक्तित्रयात्मकः ॥
त्वां योगिनो ध्यायति नित्यम् ॥
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ॥ ६ ॥
॥ गणेश मंत्र ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम् ॥
अनुस्वारः परतरः ॥ अर्धेन्दुलसितम् ॥ तारेण ऋद्धम् ॥
एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥ गकारः पूर्वरूपम् ॥
अकारो मध्यमरूपम् ॥ अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ॥
बिन्दुरुत्तररूपम् ॥ नादः संधानम् ॥
संहितासंधिः ॥ सैषा गणेशविद्या ॥
गणकऋषिः ॥ निचृद्गायत्रीच्छंदः ॥
गणपतिर्देवता ॥ ॐ गं गणपतये नमः ॥ ७ ॥
गणेश गायत्री ॥
एकदंताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि ॥ तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ॥ ८ ॥
॥ गणेश रूप ॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम् ॥
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम् ॥
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ॥
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ॥
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ॥
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ ९ ॥
॥ अष्ट नाम गणपति ॥
नमो व्रातपतये । नमो गणपतये । नमः प्रमथपतये ।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय । विघ्ननाशिने शिवसुताय । श्रीवरदमूर्तये नमो नमः ॥१०॥
॥ फलश्रुति ॥
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ॥ स ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥
स सर्वतः सुखमेधते ॥ स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते ॥
स पंचमहापापात्प्रमुच्यते ॥
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ॥
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ॥
सायंप्रातः प्रयुंजानो अपापो भवति ॥
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ॥ धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति ॥
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ॥
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति
सहस्रावर्तनात यं यं काममधीते
तं तमनेन साधयेत् ॥ ११ ॥
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति ॥
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान भवति
स यशोवान् भवति ॥
इत्यधर्वणवाक्यम् ब्रह्माद्याचरणं विद्यात्
न विभेति कदाचनेति ॥ १२ ॥
यो वांकुरेवंजति स वैश्रवणोपमो भवति । यो लाजेजति स यशोवान भवति ।
स मेभावान् भवति ॥ यो मोदकसहस्रेण जति
सवातिफलमवाप्नोति । यः साज्यसमिजिति
स सर्व लभते स सर्व लभते ॥ १३ ॥
अष्टी ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति । सूर्यग्रहे महानया प्रतिमासनिधी
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति ॥
महाविघ्नात्प्रमुच्यते महादोषात्प्रमुच्यते । महापापात् प्रमुच्यते ॥
स सर्वधिवति स सर्वविद्भवति । य एवं वेद इत्युपनिषत् ॥ १४ ॥
॥ शान्ति मंत्र ॥
ॐ सहनाववतु सहनीभुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ॥ तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥ स्थिरंस्तुष्टुवांसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥ स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॐ शांतिः । शांतिः शांतिः ॥
॥ इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम् ॥
FAQs
गणपति अथर्वशीर्ष का जाप करने से क्या लाभ होते हैं?
गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के आध्यात्मिक लाभ
यह पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में स्थिरता प्रदान करता है। – इससे तनाव और मानसिक परेशानियों से भी राहत मिलती है। – ज्ञान, शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए। – सच्चाई, ईमानदारी, आत्म-बलिदान, शील, निष्ठा और गहन भक्ति के लिए।
गणेश अथर्वशीर्ष का क्या अर्थ है?
गणपति अथर्वशीर्ष (संस्कृत: गणपतिथर्वशीर्ष, गणपत्यथर्वशीर्ष) एक संस्कृत पाठ और हिंदू धर्म का एक लघु उपनिषद है। यह एक दिवंगत उपनिषद पाठ है जो बुद्धि और विद्या का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता गणेश को समर्पित है। यह दावा करता है कि गणेश शाश्वत अंतर्निहित वास्तविकता, ब्रह्म के समान हैं।
गणपति अथर्वशीर्ष का जप कितनी बार करें?
श्री गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में प्रमुख देवता माना जाता है। श्रीगणेश भक्त प्रतिदिन 21 बार अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं।
गणपति अथर्वशीर्ष का जाप कौन कर सकता है?
गणेश अथर्वशीर्ष, यह गणेश स्तोत्र अथर्ववेद का एक भाग है। यह गणपति नाथ के नाम पर एक स्तोत्र है। अथर्ववेद को कंठस्थ करने वाला कोई भी व्यक्ति, यहां तक कि सामान्य व्यक्ति भी, इस स्तोत्र का जाप कर सकता है।
हम गणपति अथर्वशीर्ष क्यों पढ़ते हैं?
गणपति अथर्वशीर्ष को अथर्ववेद का एक हिस्सा कहा जाता है जो चार वेदों में से एक है। अथर्व दो शब्दों से मिलकर बना है अ (ए) का अर्थ है नहीं और थर्व (थर्व) का अर्थ है अपरिवर्तनीय मन। इसलिए अथर्वशीर्ष किसी भी गंभीर साहसिक कार्य से पहले सिर को ठंडा और मन को एकाग्र रखने के लिए संबोधित एक भजन है।
गणपति अथर्वशीर्ष की उत्पत्ति क्या है?
गणपति अथर्वशीर्ष, जिसे गणपति-उपनिषद के नाम से भी जाना जाता है, अथर्ववेद में पाया जाता है। यह पाठ बुद्धि और विद्या के स्वामी गणेश को समर्पित है, और दावा करता है कि गणेश सर्वोच्च वास्तविकता – ब्रह्म के समान हैं।
अथर्वशीर्ष की शक्ति क्या है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अथर्वशीर्ष का मस्तिष्क और दिमाग पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। योग विज्ञान के अनुसार, शरीर में गणपति का स्थान मूलाधार चक्र है। यह गुदा के पास स्थित होता है और उत्सर्जन प्रणाली पर नियंत्रण रखता है जिसमें बड़ी और छोटी आंत, मलाशय के साथ-साथ अन्य उत्सर्जन अंग शामिल होते हैं।
गणपति अथर्वशीर्ष किसने लिखा?
श्री गणपति अथर्वशीर्ष की रचना अथर्व ऋषि ने की थी जिनके पास गणपति दर्शन थे। किसी भी काम को शुरू करने से पहले श्री गणेश का नाम लेने की प्रथा है।